इन पूजाओं के माध्यम से ग्रहों और नक्षत्रों की अनुकूलता को सुनिश्चित किया जाता है और इससे व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। 

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शिव पूजन(Lord Shiva Worship

महत्व: शिव जी को त्रिदेवों में से एक माना जाता है और वे संहार के देवता हैं। - मुख्य अनुष्ठान: रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाना, बेलपत्र, धतूरा, और भस्म अर्पण करना। - पूजा का समय: शिवरात्रि, सोमवती अमावस्या, और प्रदोष व्रत के दिन विशेष महत्व रखते हैं।

शक्ति पूजन (Goddess Shakti Worship)

- महत्व: शक्ति, दुर्गा, काली, और पार्वती के रूप में पूजी जाती हैं और उन्हें सृजन और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। - मुख्य अनुष्ठान: चंडी पाठ, दुर्गा सप्तशती का पाठ, नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक देवी की पूजा, कुमारी पूजन। - पूजा का समय: नवरात्रि, दुर्गाष्टमी, और काली पूजा के दिन प्रमुख हैं।

विष्णु पूजन (Lord Vishnu Worship)

महत्व: विष्णु जी पालन और संरक्षण के देवता हैं। - मुख्य अनुष्ठान: विष्णु सहस्रनाम का पाठ, तुलसी दल अर्पण, भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की पूजा। - पूजा का समय: एकादशी व्रत, विष्णु जन्माष्टमी, और वैकुंठ एकादशी के दिन।

                                                                                  varanasi india

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विष्णु पूजन 

Lord Vishnu Worship

सनातन धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार माना जाता है। उनकी पूजा करने से न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। गुरुवार को भगवान विष्णु को समर्पित दिन माना जाता है और इस दिन उनकी पूजा करने से कई विशेष लाभ प्राप्त होते हैं

महालक्ष्मी  पूजन 

महालक्ष्मी का पूजन विशेष रूप से धन, समृद्धि, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी माना जाता है महालक्ष्मी पूजन कारने  से  जीवन में आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है ।

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Lord Ganapati Poojan

गणपति पूजन 

गणेश पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे मुख्य रूप से भगवान गणेश की आराधना के लिए किया जाता है। गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता (बाधाओं को हटाने वाला) और समृद्धि तथा ज्ञान का देवता माना जाता है, हर शुभ कार्य की शुरुआत से पहले उनका स्मरण पूजन किया जाता है। 

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संस्था के विद्वानों का काशी की परंपरा और सनातन संस्कृति के प्रति समर्पण

संस्था के विद्वानों का काशी की परंपरा और सनातन संस्कृति के प्रति समर्पण
काशी, ज्ञान का प्राचीन नगरी, सदियों से विद्वानों और साधु-संतों का केंद्र रही है। इस पवित्र नगरी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हमारी संस्था में ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने वेद, पुराण और वेदांग जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है। ये विद्वान न केवल स्वयं इस ज्ञान को आत्मसात कर रहे हैं बल्कि इसे समाज में फैलाने के लिए भी प्रयासरत हैं।

वेद, पुराण और वेदांग भारतीय संस्कृति के मूल स्तंभ हैं। इन ग्रंथों में धर्म, दर्शन, विज्ञान और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की गई है। हमारे विद्वानों ने इन ग्रंथों का गहन अध्ययन कर, उनके सूक्ष्म अर्थ को समझने का प्रयास किया है।

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Sri Gokul JI

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Sri Akhilesh ji

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सोलह संस्कार (16 Sanskars) के अनुष्ठान

1. गर्भाधान संस्कार

महत्व यह संस्कार संतान प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। विधि: विवाह के बाद पहले संयोजन के समय विशेष मंत्रों का उच्चारण और देवताओं का आह्वान।

2. पुंसवन संस्कार

- महत्व: गर्भधारण के तीसरे महीने में संतान के स्वास्थ्य और विकास के लिए किया जाता है। - विधि: गर्भवती महिला के लिए विशेष औषधियों का सेवन और मंत्रों का जाप।

3. सीमंतोन्नयन संस्कार

- महत्व: गर्भधारण के चौथे या आठवें महीने में मां और बच्चे की सुरक्षा के लिए किया जाता है। - विधि: गर्भवती महिला की बालों की मांग भरना, भजन-कीर्तन, और हवन।

4. जातकर्म संस्कार

महत्व: जन्म के समय नवजात शिशु के लिए किया जाता है। - विधि: शिशु के मुंह में शहद और घी देना, मंत्रोच्चार, और आशीर्वाद।

5. नामकरण संस्कार

महत्व: जन्म के दसवें या बारहवें दिन शिशु का नामकरण करना। - विधि: परिवार और पुरोहित के सामने शिशु का नामकरण और आशीर्वाद।

6. निष्क्रमण संस्कार

महत्व शिशु को पहली बार घर से बाहर ले जाने का संस्कार। - विधि: शिशु को सूर्य, चंद्रमा और देवताओं के दर्शन कराना और प्रार्थना।

7. अन्नप्राशन संस्कार

महत्व: शिशु को पहली बार अन्न ग्रहण कराना। - विधि: छठे या आठवें महीने में शिशु को खीर या चावल खिलाना और पूजा।

8. चूडाकर्म संस्कार

महत्व: शिशु का पहला मुंडन संस्कार। - विधि: प्रथम बार बाल कटवाना, हवन, और देवताओं का आह्वान।

कर्णवेध संस्कार

महत्व: शिशु के कान छेदन का संस्कार। - विधि कान छेदन, मंत्रोच्चार, और पूजा।

10. विद्यारंभ संस्कार

महत्व: शिशु की शिक्षा का आरंभ। - विधि बच्चे को पहली बार लेखन और पठन का आरंभ कराना।

11. उपनयन संस्कार

महत्व: बच्चे को यज्ञोपवीत धारण कराना और शिक्षा की शुरुआत। - विधि: यज्ञोपवीत धारण, गुरु का आह्वान, और मंत्र शिक्षा।

12. वेदारंभ संस्कार

महत्व: वेदों के अध्ययन का आरंभ। - विधि: वेदों का उच्चारण, गुरु का आह्वान, और प्रार्थना।

13. केशांत संस्कार

महत्व: बच्चे का पहला मुंडन यज्ञोपवीत के बाद। - विधि: बाल कटवाना, स्नान, और हवन

14. समावर्तन संस्कार

महत्व: शिक्षा समाप्ति पर किया जाने वाला संस्कार। - विधि: स्नान, नया वस्त्र धारण, और गृहस्थ जीवन की शुरुआत।

15. विवाह संस्कार

महत्व: जीवन साथी के साथ गृहस्थ जीवन की शुरुआत। - विधि: वरमाला, सप्तपदी, सिंदूरदान, और हवन।

16. अंत्येष्टि संस्कार

महत्व: मृत्यु के बाद आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए। - विधि: शव का अंतिम संस्कार, हवन, और प्रार्थना।

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